SHRI RAM AUR NISHAD RAJ KI KAHANI IN HINDI
Friendship day special: श्री राम और निषादराज जी की मित्रता की कहानी
Shri Ram and Nishadraj Friendship story in hindi: निषादराज और श्री राम ने गुरुकुल में इकट्ठे शिक्षा ग्रहण की थी। श्री राम से उनकी मित्रता गुरु के आश्रम में हुई थी। श्री राम को जब 14 वर्ष का वनवास हुआ तो श्री राम ने, मां सीता और लक्ष्मण जी के साथ वन की ओर प्रस्थान किया।
श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण जी सहित श्रृंगवेरपुर पहुंचे। जब निषादराज गुह ने समाचार सुना तो वह बंधुओं के साथ श्री राम से मिलने पहुंचे। निषादराज बहुत आत्मीयता से श्री राम से मिलते हैं और उन्हें अपने राज्य में आने के लिए आमंत्रित करते हैं।
वह श्री राम से पूछते हैं कि प्रभु आपने और लक्ष्मण जी ने राजकुमार होते हुए, मां सीता ने जोकि अयोध्या की कुल वधु है उन्होंने यह वल्कल वस्त्र क्यों धारण किए हैं। श्री राम उनको अपने वनवास के बारे में बताते हैं। वनवास की बात सुनकर वह हृदय में बहुत दुखी हो जाते हैं।
वह कहते हैं कि प्रभु आप मेरे राज्य के राजा बन जाएं। श्री राम ने बहुत ही विनम्रता से अपने पिता के लिए हुए वचन के बारे में निषादराज को बताते हैं। श्री राम कहते हैं कि वह किसी भी राज्य की सीमा में अंदर प्रवेश नहीं कर सकता इसलिए तुम यहीं वन में ही हमारे रात्रि रहने का प्रबंध कर दो।रात्रि वहां पेड़ के नीचे श्री राम और मां सीता ने विश्राम किया। श्री राम और सीता माता को भूमि पर सोते देख निषादराज जी का हृदय द्रवित हो जाता है और वह सोचते हैं कि यह विधाता की कैसी लीला है जो महलों में वास करने वाले इस पथरीली भूमि पर सो रहे हैं।
इसी से मेरे परिवार का पालन पोषण होता है। यदि आप नदी पार करना चाहते हैं तो आप मुझे अपने चरण पखारने दो।
मैं आपके चरण कमल धोकर ही आपको नाव पर के ऊपर चढ़ाऊंगा। फिर भले ही लक्ष्मण जी मुझे तीर मार दे। मुझे आपसे कोई उतराई भी नहीं चाहिए। केवट के प्रेम भरे वचन सुनकर श्रीराम ने हंसकर कहा कि तू वही कर दी से तेरी नाव बच जाए। केवट जल्दी जा कर पानी ला और पैर धो ले।
श्री राम की आज्ञा पाकर केवट कठोते में पानी ले आया। श्रीराम के चरणों को धो कर फिर उस जल को पीकर श्री राम को गंगा पार ले गया। निषादराज ,लक्ष्मण जी ,सीता जी और श्री राम नाव से उतरकर रेत पर खड़े हो गए। सीता जी ने उतराई में केवट को रत्न जड़ित अंगूठी दी.केवट श्रीराम के चरणो में लौट गया कि प्रभु मुझे उतराई नहीं चाहिए । वापस लौटती बार आप मुझे जो दोगे वह मैं सिर चढ़ा कर लूंगा। तब श्रीराम ने उसे भक्ति का वरदान दिया। उसके पश्चात श्री राम ने कुछ समय पश्चात निषादराज जी को वापस लौटा दिया।
निषादराज जी का भरत पर संशय करना
जब भरत जी को श्री राम के वन गमन के बारे में पता चला तो वह श्री राम को वन से लौटने के लिए चित्रकूट की ओर चल पड़े। लेकिन जब भरत जी श्रृंगवेरपुर के समीप पहुंचे तब निषाद राज को समाचार मिला कि भारत अपनी सेना के साथ आए हैं तो उन्हें लगा कि शायद श्री राम और लक्ष्मण को मार कर भरत निशकंटक राज करना चाहते हैं उन्होंने सभी को आज्ञा दी कि सब घाटों को रोक लो नावों को कब्जे में कर लो। वह कहने लगे कि भरत से मैं खुद लडूंगा। जीते जी उन्हें गंगा जी के पार नहीं करने दूंगा।फिर किसी बुजुर्ग ने सलाह दी कि पहले भरत जी से मिल लिया जाए।
भरत जी का निषादराज जी को गले लगाना
निषादराज जी जब भरत जी के पास पहुंचे। भरत जी को जब पता चल निषादराज जी श्री राम के मित्र हैं तो उन्होंने यह सुनते ही उन्हें स्नेह से ऐसे गले लगा लिया। मानो लक्ष्मण जी के गले मिल रहे हो।
भरत जी निषादराज से कहते हैं मुझे वह स्थान दिखाओ जहां श्री राम में विश्राम किया था। भरत जी ने फिर अशोक वृक्ष के नीचे उस स्थान को प्रणाम किया। निषादराज जी ने सभी के रहने की उचित व्यवस्था करवा दी।
निषादराज का भरत जी को श्री राम के पास लेकर जाना
अगले दिन सुबह सब निषादराज जी ने सब लोगों को गंगा पार उतरवा दिया। और उसके पश्चात निषादराज जी भरत जी और सभी लोगों को लेकर चित्रकूट की ओर चल पड़े। निषादराज जी भरत जी को उस पर्वत के दर्शन कराते हैं जहां पर श्री राम निवास कर रहे हैं। उसके बाद निषादराज जी सब को साथ लेकर श्री राम जहां निवास कर रहे थे वहां पहुंच जाते हैं। वह श्री राम और भरत जी का मिलन देखकर गदगद हो रहे हैं। श्री राम ने कुछ दिन बाद भारत सहित सभी को समझा कर वापिस लौटा दिया।
अयोध्या लौटते समय श्री राम का निषादराज जी से मिलना
जब श्री राम लंका युद्ध के पश्चात वापस लौटते हैं तो वह अपने मित्र निषादराज जी से मिलने जाते हैं। श्री राम के आने की सूचना पाकर निषादराज जी प्रेम में विह्वल होकर श्री राम से मिलने दौड़े। उन्हें अपने शरीर की कोई सुध नहीं थी। श्री राम ने उन्हें प्रेम से हृदय से लगा लिया। श्री राम अपने राज्याभिषेक में भी अपने मित्र निषादराज जी को आमंत्रित करते हैं।
श्री राम और निषादराज जी की मित्रता दर्शाती है कि मित्रता में ऊंचे नीच और अमीरी गरीबी का कोई स्थान नहीं है। श्री राम जैसे एक राजकुमार के रूप में अपने मित्र से स्नेह करते थे वैसा ही स्नेह एक वनवासी के रूप में था और जब उनका राज्याभिषेक हुआ तब भी अपने खास मेहमान के तौर पर उन्होंने निषादराज गुह को बुलाया था।
Friendship day quotes in Sanskrit
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