SARASWATI MATA QUOTES

 BASANT PANCHMI QUOTES 2024 

14 FEBRUARY 

हिन्दू धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है. बसंत पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। माना जाता है कि विद्या, ज्ञान और संगीत की देवी माँ सरस्वती का इस दिन जन्म हुआ था। 

एक पौराणिक कथा के अनुसार

 जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद पेड़-पौधे, नदी, तालाब ,जीव-जंतुओं की रचना की तो सृष्टि एक दम मूक थी। जिस से धरती पर निरसता बढ़ गई।इस निरसता को दूर करने के लिए ब्रह्म जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का तो एक शक्ति उत्पन्न हुई. उस शक्ति का स्वरुप चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था। जिसके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वर मुद्रा में थे एक हाथ में पुस्तक और एक हाथ में माला थी।

जब शक्ति अपनी वीणा के तारों से मधुर संगीत की धुन निकाली, तो जीव -जंतुओं को आवाज मिली. जल की धारा में कौतूहल हुआ और हवा में सरसराहट होने लगी। सृष्टि को स्वर प्रदान करने वाली शक्ति के उस रूप को देवताओं ने देवी सरस्वती का नाम दिया। बसंत पंचमी पर पढ़ें मां सरस्वती के प्रसिद्ध श्लोक, मंत्र 

MAA SARASWATI QUOTES IN SANSKRIT 

BASANT PANCHMI QUOTES IN SANSKRIT सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ॥

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । 
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ॥

Maa Saraswati Sanskrit mantra 



या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता   या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।  Saraswati quotes mantra sholk in Sanskrit

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता 

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। 

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता 

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं   वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌। Saraswati quotes mantra sholk in Sanskrit

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं 

वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌। 

हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌ 

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः Saraswati quotes mantra sholk in Sanskrit

या देवी सर्वभूतेषु विद्या-रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'


महो अर्ण: सरस्वती प्र चेतयति केतना।

धियो विश्वा वि राजति।। 

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