RAMCHARITMANAS AYODHYA KAND 8 CHAUPAI
रामचरितमानस अयोध्या काण्ड 8 चौपाई
दोहा
चौपाई 1
जब तें रामु ब्याहि घर आए।
नित नव मंगल मोद बधाए।।
भुवन चारिदस भूधर भारी।
सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।।
चौपाई 2
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई।
उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।।
मनिगन पुर नर नारि सुजाती।
सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।।
चौपाई 3
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।
जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी।
रामचंद मुख चंदु निहारी।।
चौपाई 4
मुदित मातु सब सखीं सहेली।
फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ।
प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।
चौपाई 5
एक समय सब सहित समाजा।
राजसभां रघुराजु बिराजा।।
सकल सुकृत मूरति नरनाहू।
राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।।
चौपाई 6
नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें।
लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।।
वन तीनि काल जग माहीं।
भूरिभाग दसरथ सम नाहीं।।
चौपाई 7
मंगलमूल रामु सुत जासू।
जो कछु कहिअ थोर सबु तासू।।
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा।
बदनु बिलोकि मुकुटु सम कीन्हा।।
चौपाई 8
श्रवन समीप भए सित केसा।
मनहुं जरठपनु अस उपदेसा।।
नृप जुबराजु राम कहुँ देहू।
जीवन जनम लाहु किन लेहू।।
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